Wednesday, May 26, 2021

कर्म



कर्म किए जा,कर्म किए जा,
मन को कर निष्पाप रे।
फल की चिंता कभी न करना,
मिलता अपने आप रे।

कर्म का तुझको दूत बनाकर,
भेजा है मालिक जंग में।
कर्म पथ पर बढ़ते जाओ,
अवरोध नहीं लाना पड़ में।
कर्म को अपने बुरा न करना,
सबसे बड़ा यह पाप रे।
फल की चिंता.................

कर्म ही पूजा,कर्म है अर्चन,
जप-तप तीर्थ है सारा।
कर्म के जैसा त्याग नहीं है,
कर्म ही है सबसे प्यारा।
कर्म से बढ़कर धर्म नहीं है,
सदा रहे यह साथ ले।
फल की चिंता....................

हर करनी का लेखा-जोखा,
स्वयं विधाता लेते हैं।
जैसा जिसका कर्म देखते,
वैसा ही फल देते हैं।
कर्म फल के रूप में मिलता,
सबको सुख-संताप रे।
फल की चिंता................
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

2 comments:

  1. वर्षों पुरानी गीता में भी यही सब कुछ है।
    सुंदर

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  2. हार्दिक आभार

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