हां हमारे देश में प्रतिभावानों की कमी नहीं।
प्रतिभा की प्रगतिशीलता कभी थमी नहीं।
सभी जानते किसने कितना रिकार्ड बनाया।
कितने सारे लोगों ने हैं भारत- रत्न पाया।
लेकिन , कुछ लोगों की प्रतिभा छुट जाती है।
कोई जान नहीं पाते मन-ही-मन घुट जाती है।
हमारे गांव की एक छोटी - सी टोली में।
एक प्रतिभावान रहते हैं फूस की खोली में।
भूलन सिंह भटकन नाम के बड़े जाबांज।
उनकी सुकृतियां भी सुन लिजिए आज।
गिनकर आठ-दस मक्खियां रोज मारते हैं
मच्छर मार नहीं पाते तो नानी को पुकारते हैं।
एक बार पुदीने की डाली पर झूला लागाए।
संग बैठा संगी साथियों को भी खूब झुलाए।
पुदीने की डाली मजबूत थी रस्सी कमजोर।
गिर पड़े जमीन पर सभी, तो मंच गई शोर।
बांस की सीढ़ियां लगा चढ़े बैंगन के पेड़ पर।
तितलियों से भयभीत हो गिरे रूई की ढेर पर।
चटख गई पसलियां,मुचक गए उनके कंधे।
चिल्लाए कोई तो उठाओ हो गए सब अंधे ?
कोई आकर दो-चार तस्वीरें तो मेरी खिंचवाओ।
पहलवानी के लिए अखबारों में नाम निकलवाओ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
वाह सखी --'भूलन सिंह भटकन ' --- के पराक्रम को खूब लिखा अपने | ये कथित पहलवान ऐसी गलतियां ना करें , तो दुनिया में लोग मुस्कुराएँ कैसे ? अखबार में नाम छपवाने के लिए इतने जोखिम !! बाप रे !!! आपने मधुर हास्य भर रचना को रोचक और पहलवान की परम कामना को सदगति प्रदान कर दी सखी | आखिर अखबार में ना सही ब्लॉग पर कविता बन प्रसिद्द तो हो ही गए | इस प्यारी सी मुस्कुराती रचना के लिए आपको बधाई और शुभकामनाएं| बहुत अच्छा लिखा आपने |
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ReplyDeleteबांस की सीढ़ियां लगा चढ़े बैंगन के पेड़ पर।
तितलियों से भयभीत हो गिरे रूई की ढेर पर।
चटख गई पसलियां,मुचक गए उनके कंधे।
चिल्लाए कोई तो उठाओ हो गए सब अंधे ?
वाह सखी !!!!!!!!
आपकी मुस्कान मेरी जान है।
ReplyDeleteमेरी जान में आपके लिए सम्मान है।