काम वाली बाई के नखरे
घरबा साफ-सुथर रखिहा,
तब हमें झाड़ू मारबो जी।
बरतनमा मैंज करके रखिहा,
तब हमें खंखारबो जी।
कपड़बा धोइहा वाशिंग-मिशिन में,
हमें ओकरा पसारबो जी।
अंगना धोबे ले वाइपर लैइहा,
तब हम पानी निथारबो जी।
पोंछा लगी पोछनी लैइहा,
तब हमें घरबा पोछबो जी।
चुल्हा-चकला साफ रखिहा,
तब ओकरा धोबो जी।
अइते के साथ चाय पिलैइहा,
लौंग-इलाइची डाल के।
साथे में बिस्कुट-निमकी,
पलेटबा में दिहा निकाल के।
तरकारी-परौठा नाश्ता दिहा,
खाना में दाल-भात जी।
भुजिया-पापड़,चोखा-चटनी,
तो छोटा है बात जी।
सांझ बेला के नो गो रोटी,
टिफिनियां में दिहा भर के।
हाथ में चिकन चुरमुर दिहा,
ले जाबे ले घर के।
सप्ताह में तीन दिन नौनभेज लेबो,
बड़का कटोरा भर के।
चार कांटा कड़हिया में छोड़िहा,
रस से लबालब भर के।
सनिचर-एतबार के छुट्टी रहतो,
अपने करिहा काम जी।
पांच दिन के थकान मेटैबै,
दू दिन करके आराम जी।
परब-त्योहार में सिलिक साड़ी,
दिहा पहले कीन के।
बाल-बुतरुअन के कपड़ा दिहा,
एकक गो के गीन के।
होली-दशहरा में परबी लेबो,
दिवाली में वोनस जी।
नागा के पैसा एको ने काटिहा,
लिखके देहों बौंंड जी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
ठेठ मगहिया कामवाली के अरमन्ना!
ReplyDeleteजी भाई साहब! अपनी भाषा अपनी बोली को भी थोड़ा बढ़ावा मिले।
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