सुरमयी गोधुली बेला तक,
यह आस लिए मैं खड़ी रही।
तुम आओगे, तुम आओगे,
विश्वास लिए मैं अड़ी रही।
आँखों के पल्ले फिहकाकर
,तकती रही मैं राह तेरी।
जाने कहाँ तुम भटक गए,
मन में उठती परवाह तेरी।
वह शाम ढली,अब रात भई,
लेकिन अब तक तुम ना आए।
चंदा की चमक, तारे की टिमक,
कुछ भी मुझको अब ना भाए।
तेरी प्रतिक्षा में खड़े-खड़े ,
जी उकताया सा-लगता है।
आशंकित दिल बेचैन ये मन,
कुछ धबराया-सा लगता है।
बस एक झलक की चाहत है,
हो रहा है अब चंचल चितवन।
व्याकुल हृदय कमज़ोर हुआ,
रुक ना जाए अब यह धड़कन।
अब भी समय है,तुम आ जाओ,
कुछ देर हुई कोई बात नहीं।
कुछ ना लाना, बस तुम आना,
हो मेरे लिए सौगात तुम्हीं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत-बहुत धन्यबाद दीदीजी! मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए।नमन आपको।
ReplyDeleteसुरमयी गोधुली बेला तक,
ReplyDeleteयह आस लिए मैं खड़ी रही।
तुम आओगे, तुम आओगे,
विश्वास लिए मैं अड़ी रही।..
वाह! बहुत ही सुंदर मोहक अभिव्यक्ति बहना .
सादर
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
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