Friday, April 3, 2020

बस शब्दों का दंगल है जी

लेना-देना नहीं किसी को,
सब लोग कुशल मंगल है जी।
ना कोई अधिकार का झगड़ा,
बस शब्दों का दंगल है जी।

सब शब्दों के तीर चलाते।
दूजे का दिल घायल कर जाते।
कोई बोलने से जब कतराते।
तो कड़बे शब्द बोल उकसाते।
शब्दों को सुन ऐसा लगता,
कटुक्तियों का तरू जंगल है जी।
ना कोई अधिकार का झगड़ा,
बस शब्दों का दंगल है जी।

नित्य शब्दों का होता युद्ध।
शब्द -बाण चलाते सभी बेशुद्ध।
हैं पढे़-लिखे सब लोग प्रबुद्ध।
फिर क्यों किसी के खड़े विरुद्ध।
एक-दूजे के कटु शब्दों से,
सबका मन अब चंगल है जी।
ना कोई अधिकार का झगड़ा,
बस शब्दों का दंगल है जी।

बोलते शब्दों को तोड़- मरोड़।
तिरछा- कोना-सा देकर मोड़।
स्वयं शब्दों में कुछ देते हैं जोड़।
सभी का लगा हुआ यह होड़।
दूसरे को नीचा दिखलाना,
सबसे बड़ा अमंगल है जी।
ना कोई अधिकार का झगड़ा,
बस शब्दों का दंगल है जी।
                  सुजाता प्रिय
                 ०४.०४.२०२०

2 comments:

  1. नित्य शब्दों का होता युद्ध।
    शब्द -बाण चलाते सभी बेशुद्ध।
    हैं पढे़-लिखे सब लोग प्रबुद्ध।
    फिर क्यों किसी के खड़े विरुद्ध।
    एक-दूजे के कटु शब्दों से,
    सबका मन अब चंगल है जी।
    ना कोई अधिकार का झगड़ा,
    बस शब्दों का दंगल है जी।
    बहुत बढिया सुजाता जी | सोशल मीडिया की कहानी लिख दी आपने | मधुर हास्य रचना !सब मंगल ही मगल रहे यही कामना है | सस्नेह

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी! नमन आपको।

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