Thursday, April 2, 2020

डाल-डाल खिल गया पलाश

आया वसंत लेकर मधुमास।
वन-उवपन खिल गया पलास।

रंग इसका है श्रृंगार भरा।
है लाल-लाल अंगार भरा।
झूण्ड बना खिल जाता है।
पेड़ों पर आग लगाता है।
दहक-दहक करता परिहास।
वन-उवपन खिल गया पलास।

अधखिला-सा डाल-डाल।
आधा काला आधा लाल।
लगता अंगीठी अधसुलगी।
लटक डालियों के फुनगी।
औषधीय गुण भरें है खाश।
डाल-डाल खिल गया पलास।

लगता लाल चोंच के शुक।
इसलिए कहाता है किंशुक।
रंग फाग का लेकर आता है।
पर हाथ न किसी के आता है।
डालियाँ इसकी चूमे आकाश।
डाल-डाल खिल गया पलास।

यह है परसा यह है केसु।
यह-ही रक्तपुष्प यह-ही टेसु।
पत्तों  को यह ढक जाता है।
इसलिए तो ढाक कहाता है।
है बस त्रीपत्रक सुंदर सुवास।
डाल-डाल खिल गया पलास।
                  सुजाता प्रिय

5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ६ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. हृदय तल से धन्यबाद श्वेता!

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  3. लाज़बाब सृजन सुजाता जी ,सादर नमन आपको

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  4. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।

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  5. आया वसंत लेकर मधुमास।
    वन-उवपन खिल गया पलास। प्रिय सुजाता जी , मेरे शहर मेंमैने पलाश ना के बराबर देखे हैं | सच कहूं तो पिछले ही साल दिल्ली में मैंने पहली बार पलाश देखा | उसे देखकर स्तब्ध रह गयी | वही पलाश आपकी रचना में खिल रहे हैं |हार्दिक शुभकामनाएं सखी | आपका लेखन भी यूँ ही खिला रहे | सस्नेह

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