बढ़ता जा तू पग- पग प्रतिपल
जीवन भर बढ़ता जा।
मंजिल की गर राह न सूझे,
पंथ नया गढ़ता जा।
जीवन को तू करले रोशन।
खुशियोँ से तू भरले तन- मन।
इस दुनियाँ में रंग बहुत है ,
हर रंगों से रंग ले जीवन ।
रंग लगाकर, प्यार जमाकर ,
कंचन-से मढ़ता जा।
बढ़ता जा.....
मारूत से तू बढ़ना सीखो ।
जल-धारा से बहना सीखो।
इस जीवन की राह बड़ी है ,
चंदा से तू चलना सीखो ।
अग्नि- धूम से शिक्षा लेकर ,
पर्वत पर चढ़ता जा ।
बढ़ता जा............
सुजाता प्रिय , स्वरचित, मौलिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद एवं आभार मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।
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