Saturday, April 25, 2020

झील किनारे

आज रात इक सपना आया।
पुलकित मेरा मन मुस्काया।

मैं जा बैठी हूँ झील किनारे।
जल में अपना पाँव पसारे।

मुस्कुरा रही है सुनहरी उषा।
लेकर खुशियों की मंजूषा।

झील में है हरियाली छाई।
लग रही थी बड़ी सुखदाई।

पत्ते बिखर-बिखर फैले हैं।
कोमल कमल फूल खिले हैं।

मंद-मंद बह रहा था बयार।
तुझसे मिलने का अभिसार।

हाथ बढ़ाकर फूल को छू ली।
उनींदी आँखों में मैं सब भूली।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि,स्वरचित
         

4 comments:

  1. वाह सखी ! आत्मीय आनन्द भरे सपने को बहुत ही सुंदर शब्दों में ढाला है आपने |मधुर मनोरम सृजन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|

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    1. आभार आपका सखी रेणु जी।

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  2. आप तो हमें भी स्वप्नलोक में ले गई ,सुंदर स्वप्न दिखती रचना ,सादर नमन

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    1. सादर धन्यबाद सखी कामिनी जी।

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