बड़ा भयंकर रोग है छाया।
सबके मन में भय समाया।
यह कैसी आयी महामारी।
जिससे डरती दुनियाँ सारी।
नागिन से भी यह भयंकर।
बिन देखे सब भागे डरकर।
सब जन थर-थर काँप रहे हैं।
कहाँ तक पहुँची भाँप रहे हैं।
अपने घर में हैं छुपकर बैठे।
मित्र जनों से हम रहते ऐठे।
महीने भर से हैं कैद पड़े हम।
घर में भी भयभीत खड़े हम।
मानव से अब मानव हैं डरते।
नाक-मुँह को ढककर रखते ।
मिलने-जुलने से हैं कतराते।
पास जाने से भी हैं घबराते।
आकर हमें बचा लो भगवन।
भय से मुक्त करा दो भगवन।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
१४/०४ /२०२०
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