अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायुस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।
रात है काली और अँधेरा घना है,
तम दूर होगा तू दीपक जला लो।
उम्मीद न छोड़ो, मंजिल मिलेगी,
जो मन में बुने हो सपने सजा लो।
देखो तो कितनी है रंगीन दुनियाँ,
इन रंगों को लेकर उर में समा लो।
रूठा न करना कभी भी किसी से,
रूठे हुए को जरा तुम मना लो।
पराये को अपना बनाना कला है,
अपनों को अपने दिल में बसालो।
बुराई किसी की तू मन में न लाओ,
अच्छाईयों को भी अपना बना लो।
प्यार सिखाता जो वह गीत गाओ,
झंकार करता गजल गुनगुना लो ।
सुजाता प्रिय
राँची झारखंड
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