Thursday, April 9, 2020

हैवान

वह मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।उसकी निगाहें निरंतर मेरा पीछा करती रहती है।मानसी खीज भरे लहजे में बोलते हुए रागिनी के पास बैठ गई।
   तुम मयंक की बात कर रही हो ? रागिनी ने पूछा।
हाँ और किसकी ? पहले तो सिर्फ कॉलेज में दिखता था।पर,अब तो मेरे मुहल्ले में भी दिखने लगा है। लगता है मेरे मुहल्ले में ही घर ले रखा है।घर से कभी भी बाहर निकलती हूँ, कहीं-न-कहीं वह मुझे घूरता हुआ नजर आता है।
दिखने में भी अजीव बहसी- हैवान-सा लगता है।रागिनी ने नफरत से मुँह बनाते हुए कहा।
हाँ ईश्वर ने उसे सूरत तो बहुत खराब नहीं दिया है ,पर उसके चेहरे के भाव इतने बुरे हैं कि वह दरिंदा -सा लगता है।
शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।रागिनी ने फुसफुसाते हुए आखों के इशारे से मानसी को उस ओर  दिखाया जिधर मयंक अपने दोस्तों के साथ अपनी लाल-लाल आँखों से उसे घूरता हुआ उस ओर चला आ रहा था।
चलो हमलोग उस पेड़ के नीचे बैठते हैं। उधर राजेश अपने साथियों के साथ बैठा है।मानसी  खुश होतीे हुई बोली और उठकर चल पड़ी।
हाँ ठीक कहती हो ।कम-से-कम उन दरिंदों से तो सुरक्षित रहेंगे।दोनो कॉलेज के पार्क में एक पेड़ के नीचे बैठ गई ।
थोड़ी देर बाद राजेश भी दोस्तों के साथ वहाँ पहुँच गया।सभी में बात-चीत होने लगी। उन लड़कों की चीकनी- चुपड़ी और रसीली बातों ने उनका मन मोह लिया। शुन्यकाल  समाप्ति की ओर था।राजेश के एक दोस्त ने प्रस्ताव रखा कि अगला क्लास हम नहीं करें। थोड़ी देर यहीं बैठकर  बात-चीत करेंगे।क्लास में पढ़ाया गया नोट्स किसी अन्य दोस्त से ले लिया जाएगा।
मानसी और रागिनी का भी मन बहल रहा था। इसलिए उनलोग भी ना नहीं कह सकीं । यहाँ मयंक का खौफ भी नहीं था।कुछ देर में उन्हें छोड़कर सभी छात्र क्लास में चले गए। पार्क में अब शांति और सन्नाटा छाया हुआ था।
रागिनी-मानसी भी बातों में मशगूल थी।
अचानक एक लड़के ने मानसी के बाजू में बैठते हुए कहा- यार आज मुड बड़ा रंगीन है।चलो कुछ मजा हो  जाए ।मानसी सहमकर चीख उठी। एक लड़के ने पीछे से उसके मुँह पर हथेली रखते हुए कहा-जरा भी मुँह से आवाज निकाली तो अंजाम बहुत बुरा होगा। दोनों सहेलियों की घींघी बंध गईं।उन्होंने सहायता के लिए राजेश की ओर देखा। उसने मुस्कुराते हुए  कहा- हमारी बात मान जा। हमलोग थोड़े न किसी से कहने जा रहे हैं।
अब मानसी और रागिनी को समझ में आ गया कि जिन्हें वे भला समझ रहीं थीं वे कितने बड़े शैतान हैं।वे वहाँ से भागना चाहीं पर उन्होंने उन्हें रोकते हुए कहा- जरा भी ना-नुकुर की  तो गोलियों से छलनी कर दी जाओगी।वे उन्हें झाड़ियों की ओर खींचने लगे।विरोध करने पर  पीटते चले जाते।
अब उनके पास भगवान को याद करने के अलावा कोई चारा नहीं था।
तभी अचानक कुछ लड़के दौड़ते हुए उनकी ओर आए और राजेश तथा अन्य लड़कों पर कहर बनकर टूट पड़े। उन्हें पीटते हुए दोनों को उनकी चंगुल से छुड़ाए।
दोनों दल में जमकर मार- पीट एवं हाथा-पाई हुई।किसी ने पुलिस को फोन कर दिया।पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लियाऔर सभी ने बचाने वाले लड़के को शाबाशी दी।
मानसी ने देखा उन्हें बचाने वाले लड़के कोई और नहीं मयंक और उसके साथी थे। वह अजीव उलझन में पड़ गईं।जिसे वह वहसी हैवान समझती थीं,वह उनका रखवाला बना और जिसपर पूरा विश्वास करती थी वह बहसी और दरिंदा निकला।
मानसी ने रुंधे गले से कहा-मैं तुम्हारा  कर्ज जीवन भर नहीं चुका सकती मयंक।
लेकिन मैं तो कर्ज चुकाता रहुँगा बहन ! 
मानसी उसकी ओर देखने लगी।
मयंक ने कहा- अब से पहले मैं दूसरे शहर में रहता था।जहाँ इसी प्रकार मेरी बहन की इज्जत लूटी गई ।साक्ष्य छुपाने के लिए दरिंदों ने मेरी बहन को जलाकर मार डाला।तब से मैने यह संकल्प लिया कि यथासंभव मैं हर नारियों की इज्जत लुटने से बचाउँगा।इन बहसियों की शिकार हर नारी में मुझे अपनी बहन नजर आती है।और मैं उसकी रक्षा करने के लिए दौड़ पड़ता हूँ।मैं जब से यहाँ आया हूँ राजेश और उसके दोस्तों की नजरों में तुम्हारे लिए बुरे भाव देखे।इसलिए मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा के लिए तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमता रहा।
मानसी सोंच रही थी- कितना दर्द छिपा है उसके दिल में और वह उसे हैवान समझती रही ।सचमुच किसी के रूप-रंग से किसी के मन के भावों का आकलन नहीं किया जा सकता कि वह हैवान है  या भगवान।
                       स्वरचित
                    सुजाता प्रिय
                १० .०४.२०२०

10 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. हार्दिक आभार श्वेता! मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए।।

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  3. वाह!!सुजाता जी ,समाज की सच्चाई बयान करती कथा ।

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  4. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी आपका।

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  5. चिंतनपरक कथा सुजाता जी ,आज के समय में हैवान और भगवान को पहचानना भी कठिन हो गया हैं सब के चेहरे पर एक मुखौटा लगा हैं मानसी और रागिनी समझ ही नहीं पाती किसपर भरोसा करे किस पर नहीं ,ऐसे में एक एक कदम सजग होकर रखना पड़ता हैं। सादर नमन आपको

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।आपने कहानी के भाव एवं भूमिका बखूबी समझा।सादर नमन आपको।

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    2. बहुत खूब सखी | प्रिय कामिनी ने सच कहा हैवानों ने इतने रूप धर कर दुनिया को धोखा दिया है कि भगवान् भी शैतान नजर आने लगे हैं |शुक्र है मानसी ने मयंक को पहचान लिया वरना कई बार लोग पहचाने नहीं जाये जो सच्चे हितैषी होते हैं | हार्दिक शुभकामनाएं सुजाता जी , भावपूर्ण लघुकथा के लिए |

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    3. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी !सादर

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  6. ऐसे दरिंदे ही समाज का कलंक हैं...
    काश सभी बहनो को ऐसा भाई नसीब हो
    बहुत सुन्दर संदेशपरक सृजन

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  7. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी !सादर नमन आपको।

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