सावन में बर्षा ले आती,
रिमझिम-सी सौगात।
हा़य वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।
फैली धुंध कोहरे की,
आसमान में बदली छाई।
समा जाने को रूह में तत्पर,
ठंढी हवा बहती हरजाई ।
झम-झम-झम मेघ बरसते
दिखा रहे हैं औकात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती
पूस की बरसात।
बादलों की ओढ़ रजाई,
सो गया ठिठुर मार्तंड।
आगोश में सभी को ले,
यह भीषण ठंढ प्रचंड ।
काँप रहे सब थर-थर,
ओढ़ कमली बाँध गात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।
भींग गई लकड़ियाँ सारी,
अलाव जलाना नामुमकिन।
रात्री में बरसते ओस,
सीतलहरी का प्रकोप दिन।
काटे नहीं कटती है,
ठंढ की यह लम्बी रात।
हाय वेदर्दी बड़ी सताती,
पूस की बरसात।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद दीदीजी।मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।सादर धन्यबाद।
ReplyDeleteबेहद हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
Deleteहाय वेदर्दी बड़ी सताती,
ReplyDeleteपूस की बरसात।
बहुत सुंदर रचना सखी ,सादर नमन
धन्यबाद सखी ।नमन
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद भाई!
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