हे ज्ञान दायिनी प्यारी माता,
क्षमा करो अपराध ।
कला ज्ञान-विज्ञान विधाता,
क्षमा करो अपराध।
क्षमा करो मैं जग-प्राणि के,
अवगुण चित में लाती हूँ।
गुण का आदर कर नहीं पाती,
ईर्ष्या से भर जाती हूँ।
जल-भुनकर मैं मन में अपने,
भर लेती हूँ विषाद,
मेरा क्षमा करो अपराध।
कंठ दिया मुझे शब्द दिया,
पर मधुर वचन न बोलूँ मैं।
वाणी दो ऐसी माँ मुझको,
जब भी मुख को खोलूँ मैं।
स्वर में पहले मधुरस घोलूँ
फिर मैं बोलूँ बात,
मेरा क्षमा करो अपराध।
मुझ दुष्टा को हे जग द्रष्टा,
ज्ञान की राह दिखाना माँ।
जब मैं भटकूँ हाथ पकड़कर,
सत-पथ पर ले आना माँ।
ज्ञान-गुरू बन सर पर मेरे,
रखा हरदम हाथ।
मेरा क्षमा करो अपराध।
क्षमा,दया,तप त्याग की माता,
दे करके वरदान।
मन में ऐसी लगन लगा दे,
करूँ मैं जन कल्याण।
सारा जग रोशन कर डालूँ,
सत्य का देकर साथ।
मेरा क्षमा करो अपराध।
सुजाता प्रिय
बेहद प्यारी वंदना सुजाता जी ,बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसादर धन्यबाद कामिनी जी।आपको भी वसंत पंचमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
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