माचिस की छोटी ती्ली हूँ,
जलती और जलाती हूँ।
तम हर लेना काम है मेरा,
सबको यही सिखलाती हूँ।
रात अँधेरे में मैं जलती,
अँधेरा को दूर भगाती हूँ।
लालटेन मोमबत्तियाँ जला,
घर रोशन कर जाती हूँ।
रसोई घर में जाकर जलती,
चुल्हे में आग सुलगाती हूँ।
स्वादिष्ट भोजन बनबाकर,
सबकी भूख मिटाती हूँ।
मंदिर-मंदिर में जलकर,
धूप - कपूर जलाती हूँ।
दीपक-आरती में अपनी,
भूमिका सदा निभाती हूँ।
कुम्भकार के आवे में जल,
मिट्टी-पात्र पकबाती हूँ।
कारखाने में जलकर,
उपयोगी सामान बनबाती हूँ।
लोहर-सोनार घर जलकर,
भट्ठी मैं फुकबाती हूँ।
विभिन्न वस्तुएँ और गहने,
सबके लिए गढ़बाती हूँ।
कितना गिनाऊँ छोटी होकर ,
काम बड़े कर जाती हूँ।
पुरातन काल से छोटे-बड़े,
सबको सदा ही भाती हूँ।
सुजाता प्रिय
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता! सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को साझा करने के लिए।गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteवाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब !एक छोटी सी तीली ,काम अनेक करती है 👌👌
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन एक माचिस की तीली से दिया जलकर अन्धकार मिटाता है वहीं ना जाने कितने काम आती हूं ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद आपका। सादर
Delete
ReplyDeleteलाज़बाब...., बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार
धन्यबाद सखी सादर नमन ।
Delete