Friday, January 24, 2020

माचिस की छोटी तीली हूँ

माचिस की छोटी ती्ली हूँ,
लती और जलाती हूँ।
तम हर लेना काम है मेरा,
सबको यही सिखलाती हूँ।

रात अँधेरे में मैं जलती,
अँधेरा को दूर भगाती हूँ।
लालटेन मोमबत्तियाँ जला,
घर रोशन कर जाती हूँ।

रसोई घर में जाकर जलती,
चुल्हे में आग सुलगाती हूँ।
स्वादिष्ट भोजन बनबाकर,
सबकी भूख मिटाती हूँ।

मंदिर-मंदिर में जलकर,
धूप - कपूर जलाती हूँ।
दीपक-आरती में अपनी,
भूमिका सदा निभाती हूँ।

कुम्भकार के आवे में जल,
मिट्टी-पात्र पकबाती हूँ।
कारखाने में जलकर,
उपयोगी सामान बनबाती हूँ।

लोहर-सोनार घर जलकर,
भट्ठी मैं फुकबाती हूँ।
विभिन्न वस्तुएँ और गहने,
सबके लिए गढ़बाती हूँ।

कितना गिनाऊँ छोटी होकर ,
काम बड़े कर जाती हूँ।
पुरातन काल से छोटे-बड़े,
सबको सदा ही भाती हूँ।
                सुजाता प्रिय

8 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता! सोमवारीय विशेषांक में मेरी रचना को साझा करने के लिए।गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  3. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब !एक छोटी सी तीली ,काम अनेक करती है 👌👌

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  4. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।

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  5. सुन्दर सृजन एक माचिस की तीली से दिया जलकर अन्धकार मिटाता है वहीं ना जाने कितने काम आती हूं ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद आपका। सादर

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  6. लाज़बाब...., बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार

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    1. धन्यबाद सखी सादर नमन ।

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