Saturday, January 11, 2020

बोली की चोट

बोली ऐसी बोलिए लगे न दिल पर चोट।
घाव घनेरी ना करे,रहे न दिल में खोट।

बोली से न मारिए,कभी किसी को शूल।
जब मुख को खोलिए झड़ता जाए फूल।

बोली तो पत्थर बनकर,चोट करे भरपूर।
बोली से ही दिल टूटता, होकर चकनाचूर।

चोट सदा तूम बेचते, बोली में क्यों ढाल।
बोली सुनकर जन के, मन में रहे मलाल।

टूटे दिल के टुकड़े को, सके न कोई जोड़।
जोड़ सके तो जोड़ ले, उसमें रहेगा जोड़।

बोली की एक चाशनी,सबके मन को भाय।
दिल के छाले को भरे ,बोली मरहम लगाय।

विनती है कर जोड़कर,मीठी बोली बोल।
सुनकर कड़वी ना लगे ,मन में ले तू तोल।
                          सुजाता प्रिय

14 comments:

  1. विनती है कर जोड़कर,मीठी बोली बोल।
    सुनकर कड़वी ना लगे ,मन में ले तू तोल।

    सत्य वचन ,सुंदर सृजन ,सादर नमन सुजाता जी

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  2. जी सादर धन्यबाद सखी।सुप्रभात

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. शुभप्रभात, चोट जैसी नकारात्मक विषय पर भी आपने विस्मयकारी रचना लिख डाली हैं । मेरी कामना है कि यह प्रस्फुटन बनी रहे और हमारी हिन्दी दिनानुदिन समृद्ध होती रहे। हलचल के मंच को नमन करते हुए आपका भी अभिनंदन करता हूँ ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद भाई।हमारी रचना के गहन अध्ययन करने के लिए।सोंच साकारात्मक होगी तो साकारात्मक भाव भी दूर हो जाएँगे।नमन।

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  5. वाह !बेहतरीन सृजन प्रिय बहना
    सादर

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    1. धन्यबाद बहन।सादर नमन।

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  6. आभार सर।सादर नमस्कार।

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  7. बोली तो पत्थर बनकर,चोट करे भरपूर।
    बोली से ही दिल टूटता, होकर चकनाचूर।
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर.... लाजवाब।

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  8. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी। सादर नमन।

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  9. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति

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  10. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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