रमिया आज फूले न समाई।
महीने भर की मिली कमाई।
चार घर चुल्हे-चौका करती।
झाड़ू-पोछा कर पानी भरती।
कपड़े धोती औ बर्तन धोती।
तड़के जगती देर से सोती।
हाथ में अपने लेकर पगार।
पहुँची जब वह अपने द्वार।
बच्चे पेट पकड़कर बैठे थे।
भूखे मुँह फुलाकर रूठे थे।
गई रसोई के अंदर वह जब।
याद आया यह उसको तब।
आटे-चावल औ दाल नहीं है।
नमक-तेल का हाल यही है।
दौड़ी-दौड़ी वह गई बाजार।
उसमें खतम हो गए हजार।
सोची कल बाजार जाऊँगी।
अपने कुछ शौक पुराऊँगी।
सितारें वाली मैं साड़ी लूँगी।
सिंदूर , बिंदी औ चूड़ी लूँगी।
मुन्नी की किताब-कॉपी लूँगी ।
मुन्ने की चप्पल- टोपी लूँगी।
हरिया दारू पीकर आया ।
आँखें तरेर कर वह गुर्राया ।
झोंटे खींच-खींचकर पीटा।
पटक भूमि पर उसे घसीटा।
पूछा वह गंदी गाली देकर।
कहाँ गई थी तू पैसे लेकर।
मेरे घर में है बस मेरी तूती।
तू है बस मेरे पैरों की जूती।
सारी कमाई रख मेरे हाथ।
तब रखूगाँ तुझको मैं साथ।
रमिया के हो गए सपने चूर।
शौक-मौज सब हुए काफूर।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी दीदीजी सादर नमस्कार एवं नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ।मेरी लिखी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन सुजाता जी ।
ReplyDeleteजी धन्यबाद सखी मीनाजी।सादर नमन।नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteनववर्ष की असीम शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteधन्यबाद भाई आपको भी नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ
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