ना पंछी हूँ ना तितली हूँ,
मैं आसमान में उड़ती हूँ।
दूर - दूर तक घूमती हूँ,
जब चाहूँ वापस मुड़ती हूँ।
ना विमान हूँ ना तुफान हूँ,
फिर भी भागी फिरती हूँ।
ना पंख हैं ना पाँव है,
जब चाहूँ उठती-गिरती हूँ।
ना हड्डी ना पसली मेरी,
ना मांस-खून ना चमड़ी है।
ना हाथ-मुँह है,ना पेट है,
मोल मेरा बस दमड़ी है।
अन्न-जल कुछ ना चाहिए,
ना खाती ना पीती हूँ।
ना सांस लेती,उछ्वास लेती,
हैरत है कैसे जीती हूँ।
ना कोयला , ना पेट्रोल चाहिए,
ना बिजली से चलती हूँ ।
ना भाप, ना गैस चाहिए,
निराधार मैं पलती हूँ।
उड़ूँ मचलकर, जैसे नभचर,
नन्हीं नटखट, करती छटपट।
रंग-विरंगी, मन- मतंगी,
हटपट-झटपट भागूँ सरपट।
देश-विदेश में पहचान मेरा,
जन-जन मेरे संग हैं।
मन में सबके भरूँ उमंग,
मेरा नाम पतंग है।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद एवं आभार दीदीजी।मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
देश-विदेश में पहचान मेरा,
जन-जन मेरे संग हैं।
मन में सबके भरूँ उमंग,
मेरा नाम पतंग है।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी ।मकरक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पतंग की कथा
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सखी मनभावन पतंग की सुंदर आत्मकथा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।
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