Friday, January 17, 2020

ज्ञान पिपासा

जिसके मन में ज्ञान पिपासा।
ज्ञान की जिसे है अभिलाषा।

ज्ञानामृत उसके घर बरसेगा।
ज्ञान पान कर मन हरषेगा।

घट ज्ञान का कभी न भरता।
ज्ञान को ना कोई भी हरता।

जग सूना है बिना ज्ञान के।
घटता है यह बिना दान के।

उतना बाँटो जितना पाओ।
देने में कभी ना सकुचाओ।

अगर ज्ञान की प्यास तुझे है।
ज्ञानी बनने की आस तुझे है।

अज्ञानी को तुम बाँटो ज्ञान।
पाओगे तुम जग में सम्मान।
               सुजाता प्रिय

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शनिवार 18 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सादर आभार मेरी रचना को साझा करने के लिए।सादर नमन।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- 4 (चर्चा अंक -३५८४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  4. जी सादर धन्यबाद अनीता जी मेरी रचना को शब्द सृजन चर्चा अंक में साझा करने के लिए। सादर नमन।

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  5. उतना बाँटो जितना पाओ।
    देने में कभी ना सकुचाओ
    बहुत सुंदर ,शिक्षाप्रद रचना ,सादर नमन सुजाता जी

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    1. जी आभार आपका।आपको भी सादर नमस्कार कामिनी जी।बहुत दिनों बाद बात हुई आपसे।

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  6. बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद सृजन सुजाता जी ।

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    1. जी सादर धन्यबाद सखी।नमन

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  7. ज्ञान न पिपासा बढ़े तो बात बने....
    बहुत उत्तम भाव शानदार सृजन
    वाह!!!

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  8. धन्यबाद सखी! सादर

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