Wednesday, January 22, 2020

मुझमें तुझमें है फर्क यही

मैं भूल न पाती हूँ तुझको,
तुम याद कभी ना करते हो।
मैं दूर नहीं होती तुझसे ,
तुम पास आने से डरते हो।

तुम राजा अकड़ विचारों के,
मैं कोमल दिल की रानी हूँ।
तुम शान और गुमान लिए,
मैं केवल स्वाभिमानी हूँ

मैं सुंदर फूल हूँ बगिया में,
तुम भौंरा बन मड़राते हो।
रसपान मेरा कर लेने को,
तुम बेध मुझे उड़ जाते हो।

तुम बन ऊँचे आकाश खड़े,
मैं सहनशील इक धरती हूँ।
तुम क्रोधित हो गरजते हो,
मैं सबकी पीड़ा हरती हूँ।

मैं कल-कल बहती नदिया हूँ,
तुम ऊँचे पर्वत से झरते हो।
मैं शांत- चित इक झील बनी,
तुम समंदर बन उमड़ते हो।

अपने जीवन की नदिया में,
मैं पार लगाती नैया हूँ ।
तुम यदा-कदा पतवार पकड़,
कहते हो मैं खेबैया हूँ।

गर फर्क हमारा मिट जाए,
दिल का प्रसून कुछ खिल जाए,
तब लक्ष्य हमारा पूरा हो,
फिर मंजिल अपनी मिल जाए।
                   सुजाता प्रिय

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