अंत सुनिश्चित है जग वालों ,
पर,अभी न होगा मेरा अंत।
अभी-अभी तो आया हूँ मैं,
संग में लेकर खुशियाँ अनंत।
तरुओं की जर्जर काया को,
हमको तरुण बनाना है।
पतझड़ से खाली डाली में,
नव पल्लव भर जाना है।
पल्लवों के ऊपर मंजरियों का,
झालर हमें सजाना है।
उस झालर के बीच हमको,
टिकोलियाँ लटकाना है।
नंदन-कानन सजाने आया मैं,
शुभ भावों का शुभेच्छु संत।
अभी बहुत से जप-तप करना,
अभी न होगा मेरा अंत।
अभी रंगीन तितलियों को,
फूलों पर मड़राना है
अभी तो नीड़ में अकुलाती,
चिड़ियों को चहकाना है।
अभी तो भौंरों को संगीत का,
सुंदर तान बजाना है
कोयल के प्यारे गीतों को,
पंचम सुर में गाना है।
जीव-जगत मनुहार है करता,
अभी न जाओं तुम वसंत।
इसलिए तो कहता हूँ मैं,
अभी न होगा मेरा अंत।
अभी तो खेतों की क्यारी में,
हरियाली भर जाना है
सरसों की पीली कलियों से
धरती हमें सजाना है।
रवि फसल के छिमियों में,
अन्न के दाने भर जाना है।
लताओं में लटकी फलियों को,
सुमधुर सरस कर जाना है
चमक धरा जब मुस्काएगी,
मुस्काएगा दिग-दिगंत ।
अभी-बहुत ही काम है करने,
अभी न होगा मेरा अंत।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 03 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी दीदीजी सादर नमन।मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए हृदय तल से धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना है दीदी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता।
Deleteबहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
धन्यबाद भाई।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यबाद
Deleteआशा का आँचल थामें प्रकृति सौंदर्य के साथ सुंदर सृजन सखी ।
ReplyDeleteवाह!!
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।नमन
ReplyDeleteचमक धरा जब मुस्काएगी,
ReplyDeleteमुस्काएगा दिग-दिगंत ।
अभी-बहुत ही काम है करने,
अभी न होगा मेरा अंत
वाह !सुजाता जी बहुत ही उन्दा सृजन ,सादर नमन आपको
धन्यबाद कामिनी बहन।आपको भी सादर नमन ।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सरस लयवद्ध अप्रतिम रचना।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
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