Tuesday, July 19, 2022

दहलीज (लघुकथा)



दहलीज (लघुकथा)

सास के उलाहने -तानों, ननदों के दुर्व्यवहारों, देवर की अकड़ और शराबी पति की बदसलूकियों से परेशान शोभा ने फैसला लिया  कि आज वह यह घर छोड़ देगी।जिस घर में मान-सम्मान नहीं, प्यार-मुहब्बत नहीं,उस घर में रहने से क्या फायदा।उसने अपना पर्स उठाया और सोचा दो घंटे में मायके पहुंच मांँ को इनका रवैया बताऊंगी। फिर जो होना होगा सो होगा। फिर इस घर में वापस नहीं आना।पति और ससुर जी आफिस,देवर ननद सभी कालेज।सासु माँ की खर्राटे की गूंज सुनते ही वह बाहर के कमरे में आ गयी।अभी सुनहरा मौका है जाने का। जैसे ही कमरे की दहलीज लाँंघी उसे माँ जी द्वारा दिलवाया गया वह वचन याद पड़ गया , जब पहली बार इस घर में प्रवेश करते हुए इस दहलीज के अंदर कदम रखी थी। बोलो बहू ! "घर के इस दहलीज से कभी वापस नहीं जाऊँगी।"उसने सोचा,ना जाने कैसे -कैसे वचन दिलवाये जाते शादी के वक्त।उन वचनों का क्या ? जो वर-कन्या को बोलने कहा जाता है बोल देते हैं।
"बहू जरा पानी पिलाना " सासु माँ की आवाज आयी। पानी दे ना दे उन्हें?वह असमंजस की स्थिति में खड़ी हो गयी। तभी शादी के समय अपनी माँ द्वारा माँ जी को बोली गयी यह बात उसे याद आयी-"आज से मेरी शोभा आपके घर की शोभा है।अब आप ही इसकी माँ हैं।" उसने सोचा मैंने भी तो अपनी माँ से कम सम्मान उन्हें नहीं दिया।बहू !माँ जी ने फिर पुकारा।दिल ने कहा माँ जी को पानी दो।अगले ही पल वह मन में दृढ़ निश्चय कर बुदबुदा उठी।हाँ मैं इस दहलीज को छोड़कर नहीं जाऊँगी।सभी मुझे परेशान करते हैं तो करें। मैं उनके व्यवहारों की अनदेखी करूँगी या फिर उन्हें अपने अनुकूल ढाल लूंगी।इस दृढ़ वचन का संकल्प ले वह दहलीज के अंदर जाकर माँ जी को पानी देने लगी।
             सुजाता प्रिय समृद्धि

1 comment: