Thursday, July 14, 2022

अमानत (लघुकथा)मगही भाषा



अमानत (लघुकथा)
(मगही भाषा)

सहोदरी चाची आउर दिनेसर चच्चा पाँच महीना पर घूर के गाँव अइलथिन।बथान के खूंट्टा देखके उनकर मनमा बड़ी दुखी हो गेलै। गैया बछड़ा बिनु सब सुन लग रहलै। लेकिन मन में धिरीज धर के सोचलथिन ऐसने आफते आ गेलै तो कि करतिए हल।दूर शहर में बेटा के एक्सिडेंट के समाचार सुनके गाय-गोरू के होस करने रहलै ।सब छोड़ छाड़ के चल गेलिऐ।इस सब सोचते घरबा घुसे लगलथिन तो रधबा के मैया पर नजरिया पड़लै।देहिया में आग लग गेलै।दिनेसर चच्चा से भुनभुना के कहलथिन वसुदेबा के चिट्ठी पहुंचलै हल कि रधबा के मैया बाबु हमर सभे गैया बछड़बा के हथिया के अपन गोशलबा में बांध लेलकै।रुक तनी खा-पीके असथीर होबे दे तब तोर झखुरबा खीच खींच के मार हिऔ।आफत पड़ला पर थोड़ा दिन घर छोड़े के मतलब इ थोड़े होब हकै कि सब कुछ कोय लूट लेय।चीज वस्तु के तो घर में रखके ताला मार देलिऐ।बाकी जीब-जानवर बंद थोड़े कैल जा हकै। बोलते बोलते हाथ मुंह धोके जैसे ओसरा पर ऐलथिन रधबा के मैया भर कटोरा दही अउर थरिया में आठ-दस गो रोटी लेके ऐलै अउर चौकिया पर रख के उनका गोड़ लगे लगलै।कहल जा हकै कि भुक्खल आदमी के गोस्सा भोजन देखें शांत हो जा हकै।से सहोदरी चाची अउर दिनेसर चच्चा के हालत भी ओइसने हो गेलै।झट से दूधा नहैइहा,पूता फरिहा के आशीर्वाद देके चौकिया पर भोजन जिमे बैठ गेलथिन।तब वे रधबा माथबा पर मटुकी लेके अउर ओकर बाबु हथबा में थैला लेके अएलथिन।इस कि है रे रमेशर?दिनेश्वर चच्चा अचरज से पुछलथिन।इस तोहफे अमानत है चच्चा।तोहर गैया के दूध-दही अउर गैइठा बेचके जे पैसा होलै आउर थोड़े घी होलै।अर्से तोर गोशलबा में तोहर अमानत गैया बछड़बा के बांध देबै।सहोदरी चाची मथबा झुका के पछताय लगलथिन।इस हमर गाय-गोरू के समहार के रखलकै अउर हमें..........दिनेशर चच्चा कहलथिन घीया कहे ले देलहीं रे।बाल बुतरुअन खैते हल अउर पैसों तो भी तोरे होतै।तोहनी के मेहनत के कमाई हमें काहे लेबै।इस तोर अमानत हकौ।तू समय अमानत के सम्हार के रखलहीं इहे बहुत हकै।
        सुजाता प्रिय समृद्धि

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