Monday, September 6, 2021

मेरी गुड़िया रूठी है

मेरी गुड़िया रूठी है

छोटा-सा लहंगा सिलबा दो मां!
                   मेरी गुड़िया रूठी है।
सुंदर-सा गहना गढ़बा दो मां!
                   मेरी गुड़िया रूठी है।

इसको न भाती है सुखी रोटी
     अभी तो है यह बहुत ही छोटी।
थोड़ा-सा हल्वा बनबा दो मां!
                  मेरी गुड़िया भूखी है।

अपना मुख न कभी खोलती।
       कुछ पूछूं तो यह नहीं बोलती।
अभी बोलना इसे न आता, 
                   मेरी गुड़िया छोटी है।

बस गुमसुम-सी मुझे देखती।
      मन ही मन जाने क्या सोचती।
शायद मेरी हर बातों को
                मानती यह तो झूठी है।

कैसे तू अम्मा मुझे खिलाती।
         रोज नहाती औ रोज पढ़ाती।
यह न पड़ती,ना ही खाती,
             इसकी हर बात अनूठी है।

तुझ-सा क्या मैं प्यार न देती।
           प्यारा-सा मैं उपहार न देती।
जन्मदिन इसका न आता,
                  मुंह फुला यह रूठी है।

मां इसको तुम जरा मना दे।
           मुझे मनाने का गुर्र सीखा दे।
चाहिए हार-कंगन झुमके,
                    चाहिए इसे अंगूठी है।

इसे चाहिए नया खिलौना,
           छोटा-सा गुड्डा बहुत सलोना।
जिसके संग यह ब्याह रचाएं, 
                       इसलिए तो रूठी है।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

9 comments:

  1. सुंदर मनोहारी बाल कविता।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी दीदी जी सादर धन्यवाद, मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।

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  3. मेरी गुड़िया रूठी है

    छोटा-सा लहंगा सिलबा दो मां!
    मेरी गुड़िया रूठी है।
    सुंदर-सा गहना गढ़बा दो मां!
    मेरी गुड़िया रूठी है।…
    कितनी सुन्दर कविता

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  4. हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं।

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