Sunday, September 19, 2021

मुहब्बत की बरसात हो (ग़ज़ल)

जिंदगी में मुहब्बत की बरसात हो।
मुहब्बत ही हमारा बस सौगात हो।

मुहब्बत का बादल , छाये गगन में,
गरज के साथ मुहब्बत का प्रपात हो।

मुहब्बत की धरा पर,गिरे बूंद बनकर,
दिन में शुरू हो गिरना तो फिर रात हो।

मुहब्बत के जल से , भरे ताल पोखर,
झर-झर झरनों से यूं झंझावात हो।

मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर,
दूर -सुदूर तक यही जलजात हो।

मुहब्बत की धारा,बहे अब निरंतर,
समंदर से उसकी ,तब मुलाकात हो।

समंदर से मुहब्बत उड़े भाप बनकर,
मेघों का रूप ले , फिर बरसात हो।
      सुजाता प्रिय'समृद्धि'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सादर धन्यवाद दीदी जी।नमन आपको।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-9-21) को "बचपन की सैर पर हैं आप"(चर्चा अंक-4194) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा




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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सखी !

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  4. बहुत ही प्यारी ग़ज़ल!

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    1. हार्दिक धन्यवाद बहन !

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  5. हार्दिक आभार भाई !

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