जिंदगी में मुहब्बत की बरसात हो।
मुहब्बत ही हमारा बस सौगात हो।
मुहब्बत का बादल , छाये गगन में,
गरज के साथ मुहब्बत का प्रपात हो।
मुहब्बत की धरा पर,गिरे बूंद बनकर,
दिन में शुरू हो गिरना तो फिर रात हो।
मुहब्बत के जल से , भरे ताल पोखर,
झर-झर झरनों से यूं झंझावात हो।
मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर,
दूर -सुदूर तक यही जलजात हो।
मुहब्बत की धारा,बहे अब निरंतर,
समंदर से उसकी ,तब मुलाकात हो।
समंदर से मुहब्बत उड़े भाप बनकर,
मेघों का रूप ले , फिर बरसात हो।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 20 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद दीदी जी।नमन आपको।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-9-21) को "बचपन की सैर पर हैं आप"(चर्चा अंक-4194) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी !
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभार भाई !
Deleteबहुत ही प्यारी ग़ज़ल!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद बहन !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई !
ReplyDelete