कालेज से आते प्यास से व्याकुल,पहुंची मामी पास।
बोली- मामीजी ! पानी दीजिए,लगी है जोर से प्यास।
मामी ने पूछा और बताओ,अब क्या है हाल तुम्हारा?
सब ठीक-ठाक कहकर उनसे पानी मांगी मैं दोबारा।
उठते मामी पूछी- और बताओ,मां-पिताजी हैं कैसे ?
तिलमिला कर मैं बोली-सब ठीक ही हैं पहले जैसे।
मामी ने पूछा-और बताओ,पढ़ाई कैसी चल रही है?
मैंने कहा- खूब अच्छे से, धीरे- धीरे निकल रही है।
मामी कदम बढ़ाते पूछा-और बताओ,दीदी कहां है?
मैं बोली-कहीं मुम्बई के आगे, मेरे जीजाजी जहां हैं।
मामी बोली-और बताओ,बहन को नहीं तुम मानती।
और बताओ,बहन कहां रहती है इतना नहीं जानती।
फिर वह पूछी कि और बताओ,भाई क्या कर रहा है?
मैंने कहा-ग्रेजुएशन कर,नौकरी का फार्म भर रहा है।
मामी पूछी और बताओ,फार्म भरता या पढ़ता भी है?
और बताओ,भावी जीवन की राह कोई गढ़ता भी है?
और बताओ,तुम अपने दादा और दादी का समाचार।
बोली मैं दादाजी तो ठीक हैं,पर दादी है थोड़ी लाचार।
पुनः मामी ने पूछा-और बताओ,पास-पड़ोस का हाल।
मामी की तकिया कलाम प्रश्नों से हुआ हाल मेरा बेहाल।
मैं बोली कि सब सानंद है,अब मैं तो घर को चलती हूं।
मामी ने कहा-और बताओ,रुक जाओ पकौड़े तलती हूं।
मैं बोली-बस मांगी थी पानी,नहीं पकौड़े की मुझको चाह।
मामी ने कहा-और बताओ,बिना खाए-पीए पकड़ ली राह।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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