Thursday, September 30, 2021

नदिया की धार



कल-कल करती बहती जाती,नदिया की धार रे।
संगीत सुनाती ऐसी जैसे,भौरे करें गूंजार रे।

तेज चाल से बढ़ती जाती,मन में लेकर शान।
चलना ही है काम इसका, इस पर इसे गुमान।
जरा न रुकती,जरा न थकती,चलती मन को मार रे।
संगीत सुनाती.....................
दोनों कूल में देख उठी है कैसी आज उफान।
ऐसा लगता आज है आया सागर में तूफान।
आज है जैसे बनकर आई यह धरती की हार रे।
संगीत सुनाती...................
कभी थिरकती,कभी मचलती,मन में ले गुमान।
झूमती-गाती इठलाती-सी चल रही सीना तान।
कभी भंवर बन नाच दिखाती,सौ-सौ ठूमके मार रे।
संगीत सुनाती...................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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