जागो-जागो ऐ इंसान
मत कर मानव झूठी शान,धरा रह जाएगा गुमान।
जरा तू मेरी भी तो मान,जागो-जागो ऐ इंसान।
छल-छद्दम से दो पैसे जब, हाथ कभी पा जाते हो।
तुझ-सा बड़ा न कोई प्राणी,ऐसी अकड़ दिखाते हो।
तू है बहुत बड़ा नादान,जागो-.......
धन-दौलत का गर्व क्यों करते,इसका कोई मोल नहीं।
साथ न तेरे जाएगा यह,जाएगा तू छोड़ यहीं।
गर्व क्यूं करता है इंसान,जागोे.......
लाख जतन से महल बनाया,सब सुविधाओं से भरपूर।
खोल न पाते मन की खिड़की,खुली हवा से रहते दूर।
डाला ख़तरे में क्यों जान,जागो......
क्यों इठलाता रे मन-मुरख इस माटी की मूरत पर।
अस्थि-मज्जा से बने वदन पर, सुंदर गोरे सूरत पर।
यह तो ईश्वर का वरदान जागो.......
रूप का मत अभिमान करो, यह तो कल ढल जाना है।
ईश्वर की रचना सब सूरत,अपना न ताना-बाना है।
मत कर इस पर तू अभिमान, जागो..........
बोली एक अमोल रतन है,इसे समझ ना पाते हो।
तीखी बोली बोल जहां में, कड़वाहट भर जाते हो।
क्यों है इससे तू अंजान,जागो........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-9-21) को "आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी !
Deleteसुन्दर एवं प्रेरणादायक रचना
ReplyDeleteआभार भाई
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteछल-छद्दम से दो पैसे जब, हाथ कभी पा जाते हो।
ReplyDeleteतुझ-सा बड़ा न कोई प्राणी,ऐसी अकड़ दिखाते हो
बस यही अभिमान तो जागने नहीं देता इंसान को...
बहुत ही उत्कृष्ट प्रेरणास्पद सृजन
वाह!!!
हार्दिक धन्यवाद सखी ! बहुत दिनों बाद आपसे बातें करने का मौका मिला।
Deleteवाह। अच्छी कविता
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteवाह!बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सखी
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