Friday, August 6, 2021

सावन की कजरी



सखी री ! सावन में अइलै बलमुआ,
जिया हरसे री सखी।
सखी री ! रिमझिम बरसे सवनमा,
जियरा हरसे थी सखी‌।

हरियर साड़ी और बिंदी ले अइलै।
कान के झुम्मक और नथुनी ले अइलै।
सखी री !हाथ के लइलै कंगनमा,
जियरा हरसे री सखी !

बगिया में पिया जी झूला लगैलै।
संग में बैठाई के खूब झुलैलै।
सखी री ! गाके फिलिम के गनमा,
जिया हरसे री सखी !

खीर-पूड़ी, हलुआ, जलेबी बनैलियै।
सासु-ससुरजी के संग में खिलैलियै।
सखी री!मीठा-मीठा सभे भोजनमा,
जिया हरसे थी सखी !
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

14 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. जी सादर धन्यवाद आ.कामिनी जी।

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    1. हार्दिक आभार बहना !

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  4. मुग्ध करती रचना - - नमन सह।

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    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद।

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  5. बेहद खूबसूरत रचना

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  6. मन मुग्ध करती सुंदर सजीली कजरी।

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  7. वाह बहुत खूब।

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  8. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद ।

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