Tuesday, August 17, 2021

रूप बदलते चंदामामा



रूप बदलते चन्दा मामा

             आंगन में 
        एक खाट पड़ी थी।
उसके ऊपर इक टाट पड़ी थी।
               रात को 
      उसपर मैं सो रही थी।
मीठे -स्वप्नों में मैं खो रही थी।
            चंदामामा 
      आये हैं आंगन मेरे।
मेरी ओर अपना मुखड़ा फेरे।
            कर रहे 
    हैं हंस वे मुझसे बातें।
शिकायत मेरी क्यों ना आते।
          उसी समय
       टूट गई मेरी नींद।
सुस्वप्न टूट जाने की मानिंद।
             ढूंढ़ी चंदा
        को मैंआंखें खोल।
इत-उत हथेलियों से  टटोल।
             अनायास
        ऊपर उठीं निगाहें।
रुक गई  मेरी टटोलती बाहें।
           आसमां में 
        तारे विचर रहे थे।
चम-चम करते निखर रहे थे।

चंदामामा 
        ्भी्थे्भी््भी्थे्के्््भ
हंस-हंस मुझसे कर रहे बा
      थे लुक छिप खेल।
इक- दूजे से वेे रखकर मेल।
             चंदामामा
        का देख आकार।
मेरे  मन में यह उठा विचार।
          कहां छुपाये
        हैं वे आधा अंग। 
किसी के प्रहार से हुए हैं भंग।
             एक रात 
      देखी मैं हंसियाकार।
   एक रात दिखते थे जैसे तार।
               एक रात 
       रूप था गोल-मटोल।
आज मैं इनकी खोलूंगी पोल।
               मां  से 
       पूछा मैंने  इसका राज।
 चंदामामा आधा क्यों है आज।
              मां बोली
       चंदा बड़ा है नटखट।
रूप बदलता रहता है झटपट।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

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