Monday, August 2, 2021

टपके का डर ( लघुकथा )



बरसात की रात में एक वृद्ध दम्पत्ति कमरे में सो रहे थे।घर के अन्य लोग किसी समारोह में गये हुए थे।यह जानकार दो चोर किसी तरह उनके घर में घुस आए और इंतजार करने लगे कि जब वे दरवाजा खोलेंगे तब कमरे में घुस कर सारे किमती सामान एवं रुपए-पैसे लूट लेंगे।वे खिड़की के पास खड़े होकर उनकी बातें सुनने लगे। अचानक हल्की गड़गड़ाहट के साथ वर्षा की बूंदें टपकने लगी।
यह सुन वृद्धा ने कहा-सुनिए जी! मेरी साड़ी आंगन के टंगने पर ही रह गई। कहीं भींग न जाए। जाकर उठा लाइए।
यह सुनकर दोनों चोर एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे।सोचे अब तो दरवाजा खुलेगा।
लेकिन,उसी समय वृद्ध ने कराहते हुए कहा-मैं तो नहीं जाता तेरी साड़ी लाने। मुझे आंगन जाने में टपके का डर लगा रहता है। इसी टपके की मार से मैं महीने भर से बीमार हूं।
      उनकी बातें सुन चोरों ने सोचा।यह टपके अवश्य ही कोई बलशाली प्राणी है। तभी तो उसकी मार से वृद्ध इतने दिनों से बीमार है। कहीं हमें भी न यह टपके देख ले और मारकर बीमार कर दे।वे डर से सिर पर पांव रख कर वहां से भाग खड़े हुए।
     इस प्रकार बरसात के टपके के डर से चोरों द्वारा उनके घर के सामान लूटे जाने से बच गए।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

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