Friday, July 2, 2021

ग़ज़ल (बड़ी सुंदर नजारे हैं )



धरा पर आज है देखो, बड़ी सुंदर नजारे हैं।
यहीं पर चांद-सूरज हैं,यही टिमटिम सितारे हैं।

कहीं है बूंद शबनम का,कहीं श्रमकण टपकता है ‌।
कहीं बरखा की रिमझिम-सी बरसती अब फुहारें हैं।

कहीं हठखेलियां करते, गिलहरी- नेवले-दादूर,
कहीं कलरव से गुंजित कर,खग- कुल पर पसारे हैं।

चमन के फूल सब सुंदर, झूमते हैं महक देकर,
वहीं भौंरें - तितलियां भी,गाते गीत प्यारे हैं।

सजा हरियाली से देखो,यही का कोना-कोना है,
लताऐं डाल से लिपटी, झुमते वृक्ष कतारें हैं।

जल निर्झर से झर-झर कर,सुर संगीत की छेड़ा,
छलकते बर्षा के जल से,सरोवर के किनारे हैं।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

3 comments:

  1. धन्यवाद बहन जी ने

    ReplyDelete
  2. सजा हरियाली से देखो,यही का कोना-कोना है,
    लताऐं डाल से लिपटी, झुमते वृक्ष कतारें हैं।
    जल निर्झर से झर-झर कर,सुर संगीत की छेड़ा,
    बहुत सुंदर सुजाता जी | सावन मास में हरित वसना धरती का बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने | आपकी लेखनी का प्रवाह बना रहे |

    ReplyDelete