धरा पर आज है देखो, बड़ी सुंदर नजारे हैं।
यहीं पर चांद-सूरज हैं,यही टिमटिम सितारे हैं।
कहीं है बूंद शबनम का,कहीं श्रमकण टपकता है ।
कहीं बरखा की रिमझिम-सी बरसती अब फुहारें हैं।
कहीं हठखेलियां करते, गिलहरी- नेवले-दादूर,
कहीं कलरव से गुंजित कर,खग- कुल पर पसारे हैं।
चमन के फूल सब सुंदर, झूमते हैं महक देकर,
वहीं भौंरें - तितलियां भी,गाते गीत प्यारे हैं।
सजा हरियाली से देखो,यही का कोना-कोना है,
लताऐं डाल से लिपटी, झुमते वृक्ष कतारें हैं।
जल निर्झर से झर-झर कर,सुर संगीत की छेड़ा,
छलकते बर्षा के जल से,सरोवर के किनारे हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
वाह 👌👌👌👌
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल
धन्यवाद बहन जी ने
ReplyDeleteसजा हरियाली से देखो,यही का कोना-कोना है,
ReplyDeleteलताऐं डाल से लिपटी, झुमते वृक्ष कतारें हैं।
जल निर्झर से झर-झर कर,सुर संगीत की छेड़ा,
बहुत सुंदर सुजाता जी | सावन मास में हरित वसना धरती का बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने | आपकी लेखनी का प्रवाह बना रहे |