विधा-कुण्डलिया छंद
मत कर मानव तू अभिमान।
धरा रह जाएगा यह गुमान।
धन-दौलत का दंभ न करना।
किसी की दौलत मत तू हरना।
मत कर कभी तू झूठी शान ।
भाई रे यह कहना मेरा मान।
अहंकार मत करना तू भाई।
थोड़ी दौलत तूने है कमाई।
किसी को क्या तुम दे पाते हो।
अकड़ क्यूं झूठी दिखलाते हो।
खुद पर अब तू है क्यूं हैरान।
बहुत है जग में जन धनवान।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सदियों से मिल रही नसीहतों और ज्ञान को अपने ही गुमान में रहते हुए हम कभी भी अपने जीवन में पूर्णतया नहीं उतार पाए !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद भाई
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