Thursday, July 1, 2021

धरती के भगवान (लघुकथा)



विद्या का मन बहुत घबरा रहा था। बेटा को कोरोना मरीजों के वार्ड में ड्यूटी पड़ी।मन की झुंझलाहट लंच बॉक्स पर निकाल रही थी । हरीश के लिए लंच बॉक्स में भूना हुआ बादाम भरती हुई वह सोच रही थी  इससे तो अच्छा था वह घर बैठ कर कोई बैंक बगैरह की नौकरी की तैयारी करता। बस इसके पिता जी को ही ज़िद थी कि एक ही बेटा है डाक्टर बनाऊंगा।अब देख लिया ना इतनी बड़ी आपदा पड़ी है।सभी लोग घर में सुरक्षित बैठे हैं और मेरे जिगर के टुकड़े को कोरोना बैरियर बना दिया। स्टुडेंट-लाइफ में ही इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी। क्या और चिकित्सक नहीं है। मेरे फूल से बच्चे को बीमारों की इलाज में झोंकना था।
         मां जल्दी दो ना मेरा लंच- बॉक्स हरीश ने तैयार होकर आते हुए बोला। हां ठीक है ।यह स्कूल वाला लंच-बाक्स । तुम्हारे हाथ का बना हुआ मजेदार गाना खाएं बगैर मुझे चैन नहीं।ऊपर से यह बचपन बाला लंचबॉक्स।मां के हाथ से लंचबॉक्स लेकर मां पिताजी के चरण-स्पर्श किए और हास्पीटल के लिए निकल पड़ा। मां जानती थी यह सब बातें वह उसे बहलाने के लिए बोल रहा है। मां का जी चाहा उसे पकड़ कर रोक ले। लेकिन तब तक वह बढ़ चला था।
             उसके मनोभावों को पढ़ते हुए शिखर जी ने कहा-क्यों मन छोटा करती हो विद्या !उसे कुछ नहीं होगा।उसे अस्पताल जाने से हम रोक भी नहीं सकते।
       चिकित्सक धरती के भगवान होते हैं। उन्हें बीमारों की इलाज कर उनकी जान बचाना होता है। चिकित्सक का यह पहला कर्तव्य है। उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं होनी चाहिए। औरों की जान बचाना ही उसका पहला कर्म है हमारा आशीर्वाद है कि वह अपने कर्म-पथ पर हजारों बरस बना रहे। हां वना रहे मां ने भी अपने चिंतायुक्त हृदय को तसल्ली देते हुए कहा -
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

2 comments:

  1. डॉक्टर दिवस पर सुंदर संदेश तथा प्रेरणा देती कथा,बहुत शुभकामनाएँ।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी। कथा पढ़ने एवं प्रसंशा के लिए।

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