Tuesday, July 20, 2021

वो अजनबी ( लघुकथा )



वो अजनबी

रागिनी समय से पूर्व साक्षात्कार के लिए पहुंच गई थी‌। देर ना हो इसलिए भाई ने स्कूटी से पहुंचा दिया था। तीन लोगों के बाद उसका नम्बर आने वाला था।उसने सोचा साक्षात्कार में मांगे गए सारे कागजात एक बार फिर से यथास्थान रख लूं। साथ लाई फाइल को खोला।पर यह क्या? फ़ाइल से सारे कागजात गायब ।उसे पूरी तरह याद है। उसने सारे मूल प्रमाणपत्रों एवं छाया प्रति को इस थैली नुमा फाइल में रखा था। फिर वे गायब कैसे हुए। उसने खाली फाइल को पलटकर देखा। फाइल एक किनारे से फटी थी।उसे समझते देर नहीं लगी कि सारे कागजात इसी ओर से कहीं गिर पड़ा।उसे अपने-आप पर बहुत झुंझलाहट हुई क्यों उसने फटी फाईल की ओर ध्यान नहीं दिया। कहां गिरे होंगे सारे कागजात ? उसके तो प्राण छूटने लगे। 
मिस रागिनी वर्मा ! गार्ड ने उसे पुकारा।
वह रुआंसी हो उसे देखने लगी।
 आपसे कोई मिलने आया है। 
वह बाहर दौड़ पड़ी शायद उसका भाई उसे वापस ले जाने आया। ठीक ही है चली जाएगी।अब यहां उसका काम ही क्या ?
लेकिन जब वह बाहर पहुंची तो एक अजनबी लड़के को साइकिल पकड़े खड़ा देख ठिठक कर बोली क्या है ? 
बहन जी !आपके ये कागजात स्टेशन रोड में गिरे मिले। मैंने देखा इसमें आपका इस संस्थान में आज का साक्षात्कार पत्र भी है सो मैं इसे आप तक पहुंचाने आ गया। रागिनी के मुंह से बोल नहीं फुट रहे थे। 
मिस रागिनी वर्मा !अंदर उसे पुकारा गया ।शायद साक्षात्कार के लिए उसका नम्बर आ गया था। उसने एक कृतज्ञता भरी दृष्टि उस अजनबी पर डाली और साक्षात्कार के लिए चल दी। साक्षात्कार के बाद उसे नौकरी मिली।रोज आंफिस काम करने आने लगी।रोज उसकी निगाहें उस अजनबी को ढूंढती कि एक बार उससे मुलाकात हो जाए। लेकिन वह कहीं नहीं दिखा और रागिनी को आज तक अफसोस है कि उस अजनबी महामानव को कृतज्ञता के रूप में धन्यवाद तक नहीं बोल सकी।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

4 comments:

  1. ऐसे निस्वार्थ लोगों से ही इंसानियत के जीवित होने का आभास मिलता है | सुखद , प्रेरक कथा प्रिय सुजाता जी |

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  2. हार्दिक आभार सखी रेणु जी ।आपकी टिप्पणियां मेरी रचनाओं को पूर्णता प्रदान करती है।

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  3. बहुत भावुक करती लघु कथा ।

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  4. जी सादर धन्यवाद।

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