बरसात की फुहार में (गीतिका छंद)
चल रे साथी हम नहाए, बरसात की फुहार में।
आज तक हम हैं नहाए, इस नदी की धार में।
तन को अपने हम हैं धोते,मन नहीं धोते कभी।
मन को तुम मैला न रखना, बात मानो यह सभी।
मन हमारा साफ हो तो, बात सब प्यारा लगे।
दूर होताी संताप सारा ,जंग हमें न्यारा लगे।
दिल में कोई कपट नहीं हो,जीवन उसी का नाम है।
सबसे तुम मिलाप रखो,यह मेरा पैगाम है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
बहुत बढिया सुजाता जी | नहाने से लेकर मन का मेल धोना ही सबसे ऊँची भावना है जो मानवता को जीवित रखती है |
ReplyDeleteजी आभार सखी।
ReplyDeleteसार्थक सीख देती सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
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