आजा तेरे दरवाजे पर,कालू चाचा आया हूं।
अपनी फटी कमीज़ में दुकान सजाकर लाया हूं।
दैनिक जरूरत की देखो सभी सामान लगे हैं।
कंघी जेब में,कलम बटन में, चाकू पैवंद में टंगे हैं।
टाफी-बिस्कुट,मुढ़ी-मिक्सचर हाथों में लटकाया।
पुदिना-पाचक, जलजीरे को बाहों में अटकाया।
पेस्ट-ब्रश है दातुन-मंजन,सर्फ-साबुन,शैम्पू।
छोटे-छोटे नट-बोल्ट, पेचकस, स्वीच,कलेम्पू।
चीनी-चायपत्ती भी संग में हल्दी, मिर्च-मसाला।
छोटे पैकेट के नमक-तेल हैं, छोटे चाबी-ताला।
कांटे,चम्मच,कलछूल,छननी,सड़सी-चिमटे।
सूई-धागे,हूक-बटन भी, हैं डब्बे में सिमटे।
तुमको भी आसान काम से,मेरी भी कुछ कमाई।
तेरा भी कुछ समय बचेगा, मेरी भी करो भलाई।
भीख मांगने से है अच्छा,थोड़ा काम करें हम।
प्रभात फेरी में समान बेच, फिर आराम करें हम।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखण्ड
स्वरचित, मौलिक
No comments:
Post a Comment