Saturday, February 13, 2021

प्रीत न जाने रीत



मन तुमसे लगाया है प्रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

मुझे तेरी सूरत नजरों को भाई।
मैंने उसको है  दिल में बसाई।
दिल ने प्रीत का गीत है गाया,
मन में बजने लगा संगीत रे‌।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

तेरा-मेरा  है  ये रिश्ता पुराना।
फिर क्यों हमको रोके जमाना।
चाहे हमसे जीतना लड़े  वो,
होगी हमारी ही जीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।

ऊंच-नीच का भेद मिटा दो।
सारी दुनिया को समझा दो।
चाहे कोई भी नियम बना ले,
पर यह प्रीत न जाने रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              रांची , झारखंड
             स्वरचित , मौलिक

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