मन तुमसे लगाया है प्रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
मुझे तेरी सूरत नजरों को भाई।
मैंने उसको है दिल में बसाई।
दिल ने प्रीत का गीत है गाया,
मन में बजने लगा संगीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
तेरा-मेरा है ये रिश्ता पुराना।
फिर क्यों हमको रोके जमाना।
चाहे हमसे जीतना लड़े वो,
होगी हमारी ही जीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
ऊंच-नीच का भेद मिटा दो।
सारी दुनिया को समझा दो।
चाहे कोई भी नियम बना ले,
पर यह प्रीत न जाने रीत रे।
क्यों समझे न इसको मीत रे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची , झारखंड
स्वरचित , मौलिक
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