यह सत्य है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है।एक सच्चा साहित्यकार सामाजिक विषमताओं, रीति-रिवाजों,छल-प्रपंचो, उच्च-नीच, भेद-भाव, उत्थान-पतन, सेवा-सद्भाव , शिक्षा-संस्कारों सभी विषयों पर अपनी लेखनी चलाकर साहित्य रचकर सच्चाई से चित्रण कर उसके परिणामों -दुष्परिणामों को आईने की भांति दर्शाता है। साहित्यकार साहित्य के द्वारा जनमानस को जागरूक कर सुधार लाता है तथा समाज का पुनरुत्थान एवं नवनिर्माण करने का प्रयास करता है।
आम जनमानस पर भी साहित्य का प्रभाव अवश्य पड़ता है ।आम जन साहित्यिक रचनाओं को पढ़कर बहुत कुछ सीखते समझते और जानते हैं तथा साहित्यिक कथा -कहानियों में आनेवाले सुपरिणामों-दुषृपरिणामों से प्रेरित होकर स्वयं में सुधार लाने की कोशिश कर सामाजिक और मानसिक विसंगतियों को दूर करते हैं।आम जनमानस के लिए साहित्य प्रेरणादायक, शिक्षक और सुधारक है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखंड
स्वरचित, मौलिक
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