Wednesday, February 3, 2021

जावांज सिपाही भारत के



दस्तक सुनकर गुड़िया रानी, दरवाजे को खोली।
देखो मां! पिताजी आए, बड़ी चहक कर बोली।

मेरे लिए टॉफी - चॉकलेट , लाए हैं पिताजी।
हाथ में छिपाकर गुड़िया ,दिखा रहे नाराजी।

आवाज़ सुनकर आई पत्नी, जा लिपटी सीने से ‌
बोली-इंतजार कर रही हूं, मैं ग्यारह  महीने से।

पीछे का हाथ आगे ना आया ,हुआ कुछ अंदेशा।
मन की बेचैनी छिपा कर पूछी, क्या लाए संदेशा।

जब पीछे वह मुड़कर देखी, हाथ बंधी थी पट्टी।
उसे घुमा जब उसने देखा, हथेली थी पूरी कटी।

सीने पर हाथ रखकर पूछी, किसने इसको काटा।
नाम जरा उसका बतलाओ,  जाकर मारूं चांटा।

हंसकर जंग-बहादुर बोला, सीमा पर थे सोए हम।
वहां पर छुपाकर दुश्मन ,रखा था टाइम- बम।

मैंने उसे उठाकर फेंका,झटसे पहाड़ी के नीचे।
टाइम पूरी थी फटा वह,  गिरा मैं आंखें  मीचे।

इस तरह से हमने अपने, साथियों की जान बचाई।
अपना कर्तव्य निभाने में , हमने यह हाथ गवांई।

नतमस्तक हो गई सुनयना चरणों में उसके जाकर।
बोली-आज धन्य हुई मैं, जांबाज़ पति को पाकर।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित, मौलिक

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