दशरथ मांझी गहलौत का,
बिहार राज्य का पूत।
तेरी समाज सेवा से,
सब जन हैं अभिभूत।
पत्नी फाल्गुनी पत्थर से,
गिरकर हो गई घायल।
कंधे पर टांग चल पड़े,
पैदल पच्चासी माइल।छटपटा कर आधी राह में,
पत्नी ने छोड़े प्राण।
राह बनाऊंगा पहाड़ काट,
लिया तब तुमने ठान।
अब किसी की प्रियतमा,
मरे न इलाज से बंचित।
अपार शक्ति हृदय में,
कर लिया तुमने संचित।
बाईस वर्ष परिश्रम कर,
पत्थर को तुमने काट।
राह बनाया पर्वत को,
दो हिस्सों में बांट।
कल्पना में फल्गुनी को,
देखकर पाये चैन।
विश्व प्रसिद्ध हो गये,
कहलाये माउण्टेन-मैन।
लोग तुम्हारी सेवा का ,
आज भी करते वंदन।
हे वीर सच्चे साधक,
तुम्हें शत-शत अभिनंदन।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
मुझे उस पर्वत पुरुष द्वारा बनाये मार्ग, दशरथ मांझी पथ, को देखने का गौरव मिला है। मुझे लगता है कि यदि उनसे पूछा जाता तो इस पथ का नाम भी अपनी पत्नी के नाम पर ही रखते। इस अभूतपूर्व महामानव की स्मृति को समर्पित इस सुंदर रचना को प्रणाम।
ReplyDeleteमेरी रचना को पढ़ने पसंद करने एवं प्रसंशा तथा भाव अभिव्यक्त करने के लिए सादर आभार भाई!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
प्यारी स्वेता! मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌
ReplyDeleteआदरणीय सखी सादर धन्यवाद एवं नमस्कार।
Deleteकिसी और के लिए समर्पण के भावों का शानदार सृजन । सुन्दर कविता के लिए आपको सादर शुभकामनाएं । मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteनमन है दशरथ मांझी को । हौसला पहाड़ को भी काट देता है । अच्छी रचना ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
ReplyDelete