शरद ऋतु बीता, वसंत ऋतु आया।
बागों की क्यारी में,फूल मुस्काया।।
मंजरियों से सज गयी,पेड़ों की डाली।
कूक रही कोकिल ,हुई मतवाली।।
उड़ने लगी रंग-बिरंगी , तितलियां।
आज सुवासित है,गांव की गलियां।।
आओ सभी मिल,खुशियां मनाएं।
प्रेम ऋतु आया है, प्रेम धुन गाएं।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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