कृपाण घनाक्षरी
दया कर तारो-तारो, ईश्वर हमें उबारो,
जीवन आज सँवारो, विकल है अन्तर्मन।
मैं तो हूँ तेरी ही दासी,तेरे दर्शन की प्यासी,
बैठी हूँ आज उदासी,तड़पता मेरा मन।
मन के क्लेश मिटा दो,संकट से हमें बचा दो,
बेड़ा पार लगा दो, बिखर ना जाए धन।
सुनो अब अंतर्यामी, तुम्हारी मैं अनुगामी,
तुम हो सबके स्वामी, बचाओ अब जीवन।
सुजाता प्रिय समृद्धि
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-6-22) को "चाहे महाभारत हो या रामायण" (चर्चा अंक-4472) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर
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