न नशा करो,ना करने दो।
न बेमौत मरो,ना मरने दो।
नशा है ,नाश का घर,
रुलाती है जीवन भर।
सभी को कंगाल कर,
लेती धन-प्राण को हर।
धन-प्राण ना अब हरने दो।
न बेमौत मरो, ना मरने दो।
सदा यह रोग लाती,
दुःख देकर सताती।
जलाकर देह छाती,
जीवन भर है रुलाती।
अब जुल्म इसे ,ना करने दो।
न बेमौत मरो ,ना मरने दो।
मय से तू दूर रहकर,
थोड़ा मजबूर रहकर।
दिल की बेचैनी सहकर,
अलविदा इसकोक कहकर।
मन को आह,थोड़ी भरने दो।
न नशा करो ,ना करने दो।
सुजाता प्रिय :समृद्धि'
चिंतनपूर्ण विषय पर सरहनीय रचना ।
ReplyDeleteउम्मदा
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरूवार २ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जानते बूझते कूदते हैं नशे के कुँए में । संदेशात्मक रचना ।
ReplyDeleteअद्भुत सीख
ReplyDeleteसादर..
बेहतरीन रचना
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