सदा विराजो आंगन मेंरे,
हे दुःख हरणी मां तुलसी।
मेरे घर का कष्ट हरो तुम,
कष्ट निवारिणी मां तुलसी।
रोज सवेरे जल अर्पित कर,
सांझ को दीपक दिखलाऊं।
रोज भजन और करुं आरती,
तेरी महिमा मैं गाऊं।
सुख-सौभाग्य अटल तुम रखना,
हे वरदायिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................
जिस घर तेरा वास रहे मां,
उस घर से दुःख दूर रहे।
जिस घर में तेरी सेवा होता,
धन -दौलत भरपूर रहे।
कुल का गौरव सदा बढ़ाना,
हे सुख करनी मां तुलसी।
सदा विराजो..................
तेरे पत्ते के सेवन से मां,
बढ़ती है सबकी स्मृति।
तेरे मंजर को खाने से,
बांझन पाती संतति।
सर्वांग तुम्हारा महाऔषधि,
रोग विनासिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................
तुमसे मेरा एक विनय है,
जग के सब संताप हरो।
रोगी के सब रोग हरो मां,
पापी के सब पाप हरो।
शीश झुका कर करूं मैं विनती,
हे प्रभु-प्यारी मां तुलसी।
सदा विराजो.................
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित , मौलिक
वाह! तुलसी जयंती पर इस सुंदर गीत की बधाई!!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई
ReplyDelete