धरा से प्यार है तुझको।
बड़ी आलार है तुझको।
तू इसका पूत है प्यारा,
बड़ी दुलार है तुझको।
खिलाते हो धरा को तुम।
पिलाते हो धरा को तुम।
खिलाकर अन्न,पिला पानी,
जिलाते हो धरा को तुम।
तेरे खाए हुए अन्न को,
धरा इक दिन उगलती है।
वह तेरा सेर खाती है,
तो कितने मन उगलती है।
तेरे लहू सम पसीने की,
तुम्हें वह मोल देती है।
तेरे मेहनत और सेवा की,
सिला दिल खोल देती है।
तुमपर शान है मुझको ,
बड़ा अभिमान है मुझको।
तेरे श्रम पर हैं नतमस्तक,
तुम पर आन है मुझको।
कृषि से प्यार है तुझको,
मिला रोजगार है तुझको।
सुनो तुम मेरे अन्नदाता,
नमन सौ बार है तुझको।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1987...अब आनेवाले कल की सोचो...) पर गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को पांच लिंकों के आनंद पर साझा करने के लिए हार्दिक बधाई एवं आभार 🙏
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