एक लड़की कागज कलम ले,
रास्ते में जा रही थी।
लिखने कागज पर कलम से,
भूमिका बना रही थी।
लिखने मिला था वर्ग में,
सीता-हरण की पटकथा।
सोंच रही थी कैसे लिखुंगी,
नारी की अन्तर्व्यथा।
अनायास उसको एक लड़का,
बाजुओं में भर लिया।
बंदूक दिखाकर उसको बोला,
हमने तुझको हर लिया।
बोला- कि तुम न चीखना,
चुप मेरे संग चलती रहो।
मार दूंगा जान से ,
इंकार में कुछ ना कहो।
सिर झुका कर चल पड़ी वह
उसकी बताई राह पर।
छोकरा तब मुस्कुराया,
उसकी झुकी निगाह पर।
कुछ दूर जा वह मुक लड़की,
घूम कर पीछे मुड़ी।
नागिन सी फुफकार कर,
उसपर अचानक टुट पड़ी।
प्रहार वह करने लगी,
पकड़ मुट्ठी में कलम।
चेहरे को उसके गोदने,
लगी वह हो बेरहम।
पलट हमले से पराजित,
लड़के ने खोया होश तब।
गिरा धरा पर बंदूक तो,
ठंडा पड़ा कुछ जोश अब।
खोल सैण्डल सिर पर उसके,
चोट वह करने लगी।
अपने हरने वाले का अब,
प्राण वह हरने लगी।
नाखुनों से नोच डाले,
मनचले के चेहरे।
पीटने का प्रमाण देकर,
मुंह में लगाईं मुहरें।
कागज पर उसके लहु के,
छींटें भी कुछ थे पड़े।
नारी के अपमान के,
स्वाभिमान बनकर थे खड़े।
इस तरह उसने लिखे,
सीता-हरण की पटकथा।
मन में कुछ संतोष पाया,
मिट गयी मन की व्यथा।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मेरी प्यारी दिव्या। मेरी रचना को मुखरित मौन में साझा करने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सारगर्भित रचना..। सुन्दर सृजन..। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..जिज्ञासा..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद एवं आभार
ReplyDelete