उन्मुक्त धरा के सहवासी हों,
मन में भाव जगाइए।
हम सब मिलकर इस धरती को,
सुंदर सहज बनाइए।
हम सब मिलकर............
हम उन्मुक्त तभी रहेंगे,
जब भाव हमारे हों उन्मुक्त।
सभी जनों का क्लेश हरें हम,
भेद-भाव से होकर मुक्त।
वैर-द्वेष और कलुष रहित हो,
ऐसा महल सजाइए।
हम सब मिलकर.......
कभी किसी को दुःख ना दें,
किसी का ना अपमान करें।
उन्मुक्त भाव से सब प्राणि का,
सदा ही हम सम्मान करें।
प्रेम,दया सब वासी में हो,
ऐसा नगर बसाइए।
हम सब मिलकर...........
निर्भय हो हर बाला घूमें,
हर बालक निष्पापी हो।
ममता की मूरत हर नारी हो,
हर नर अब प्रतापी हो।
प्रेम परस्पर सब लोगों में हो ,
ऐसी रीत चलाइए।
हम सब मिलकर...........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर नमन दीदी जी! मेरी रचना
ReplyDeleteमेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।
ReplyDeleteबहुत खूब सखी सुजाता जी | मन के भाव इतने मुक्त और सौहार्द युक्त हों तो रामराज्य ही आ जाए जीवन में |
ReplyDeleteअगर हम सभी मन में ऐसे संकल्प लें तो शायद राम राज्य आ जाए।सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार सखी।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद एवं आभार सर।
Delete"ममता की मूरत हर नारी हो, हर नर अब प्रतापी हो।" ... प्रेरक परिकल्पना .. पर मंदिर की मूरत से लोगबाग को अवकाश मिले तब ना ...
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद भाई।आभार
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