Tuesday, August 25, 2020

गज़ल

दिल में बस जाते हैं

यूँ तो लोग कितने ही,दिल में आते-जाते हैं।
पर , कोई उनमें - सेे , दिल में बस जाते हैं।

दिल एक मंदिर है, जिसमें एक मूरत है।
मन-मंदिर में रखकर,हम उसे  रिझाते हैं।

दिल एक दर्पण है, जिसमें एक सूरत है,
पास जाकर उसके,हम प्रेम-गीत गाते हैं।

दिल एक बगिया है, जिसमें फूल खिलते हैं।
उस फूल की खुशबू को, दिल में बसाते हैं।

दिल एक दरिया है, जिसमें धारें बहती हैं,
उसमें नाव को खे कर, हम पार लगाते है।

दिल एक पंछी है,जो आसमां में उड़ता है।
मन के कोमल पंखो से, नभ चूम जाते हैं।
              सुजाता प्रिय'समृद्धि'
                स्वरचित मौलिक

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 26 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सप्रेम धन्यबाद दिव्या मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सर।सादर

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  4. बहुत खूबसूरत सृजन सखी ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

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  5. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 27 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  6. प्रेम रस में पगी ग़ज़ल ... सुंदर शेर हैं सभी ...

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    1. जी सादर धन्यबाद एवं आभार

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  7. दिल एक दरिया है, जिसमें धारें बहती हैं,
    उसमें नाव को खे कर, हम पार लगाते है।
    वाह!!!

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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  8. यूँ तो लोग कितने ही,दिल में आते-जाते हैं।
    पर , कोई उनमें - सेे , दिल में बस जाते हैं।
    दिल एक मंदिर है, जिसमें एक मूरत है।
    मन-मंदिर में रखकर,हम उसे रिझाते हैं।
    बहुत ख़ूब प्रिय सखी सुजाता जी , बहुत अच्छी ग़ज़ल लिख दी अपने |

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  9. सादर धन्यबाद सहित सादर नमन।

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