मुंडेर की आत्मकथा
हाँ मैं छत की मुंडेर हूँ।
गिरते हुए लोगों की ढाल हूँ।
धीरज रखकर सुनिए,
मैं बताती अपनी हाल हूँ।
गिरने से बचने के लिए ,
लोगों ने है मुझे बनाया।
बचाना मेरा कर्तव्य है,
जिसे मैंने बखुबी निभाया।
लोग अलग-अलग तरीके से
करते हैं मेरा इस्तेमाल।
कपड़े सुखाते हैं सभी लोग
सदा ही मेरे ऊपर डाल।
धोती , साड़ी, चादरें गलीचे,
मुझ पर ही हैं लटकाते।
तकिए,तोसक,कंबल भी,
हैं मुझ पर रखकर सुखाते।
दीवाली की झिलमिल बत्तियाँ
मुझ पर ही हैं सजाते।
दीये और मोमबत्तियाँ भी,
मुझ पर ही रख जलाते।
कौए,गौरैया आदि पक्षि गण,
मुझ पर ही हैं बैठते।
बची-खुची रोटियाँ-चावल,
क्यूँ कि लोग मुझ पर हैं रखते।
मुझ पर ही हाथ रख लोग,
झाँक नीचे का नजारा लेते हैं।
संयोग से फिसल गीर पड़े तो,
इल्जाम मेरे सिर मढ़ते हैं।
कि मुंडेर बहुत नीची है,
इसे और ऊँची होनी चाहिए।
कोई जाने-अनजाने गिरे तो,
मुंडेर को ही बचाना चाहिए।
अब आप ही बताइए जरा,
इसमें क्या है मेरा दोष।
कितनी ऊँची मुंडेर है,
सबको खुद रखना चाहिए होश।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद एवं आभार सर।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत और सादर धन्यबाद सर।
Deleteबहुत-बहुत और सादर धन्यबाद सर।
Deleteसटीक शब्दों में उकेरा है आपने मुंडेर को ...
ReplyDeleteहाँ मैं छत की मुंडेर हूँ।
गिरते हुए लोगों की ढाल हूँ।
धीरज रखकर सुनिए,
मैं बताता अपनी हाल हूँ।
गिरने से बचने के लिए ,
लोगों ने है मुझे बनाया।
बचाना मेरा कर्तव्य है,
जिसे मैंने बखुबी निभाया।..बहुत ही सुंदर।
बहुत-बहुत धन्यबाद एवं आभार सखी।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
ReplyDeleteबहुत ख़ूब सखी | एक कवी मन ही जान सकता है एक मुंडेर की कीमत | बहुत ही सुंदर शब्दों में मुंडेर के मन की बात लिख दी आपने |
ReplyDeleteसचमुच सखी! मुंडेर को भी बहुत कुछ झेलना पड़ता है।सुनना पड़ता है।सादर धन्यबाद सखी।
ReplyDelete