हर रिस्ते से प्यारा , है दोस्ती का रिस्ता।
सच्चा है वही साथी ,जो करता है मित्रता।
ना जन्म औ जाति हो,ना धर्म का हो बंधन।
जब दोस्त बने कोई , तो देखते केवल मन।
वही इसको निभाता है,जो जाने इसकी महता ।
सच्चा वह...................
गिरने से पहले जो , थाम ले हाथों को।
दुःख दर्द जो हर लेता,समझे जज्वातों को।
भटकने से पहले ही ,जो राह है दिखलाता।
सच्चा वह..........
सारे सुख - दुःख को जो , बाँट ले जीवन के।
व्याकुलता प्रसन्नता जो समझता अन्तर्मन के।
अपने सब मित्रों का जो साथ है निभाता ।
सच्चा वह..............
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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